संसार के पालनकर्ता भगवान विष्णु को एकादशी तिथि अति प्रिय है। इस दिन व्रत रखकरश्री हरि विष्णु जी की विधि विधान से पूजा की जाती है। मान्यता है कि से एकादशी व्रत और पूजा से विष्णु भगवान प्रसन्न होकर भौतिक सुख सहज रूप से प्रदान करते हैं।
वैसे तो शुभ काम में देरी नहीं करनी चाहिए इसलिए एकादशी को साल में कभी भी शुरू किया जा सकता. लेकिन एकादशी देवी विष्णु जी के शरीर से मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी उत्पन्ना एकादशी के दिन ही प्रकट हुई थीं | इसीलिए उत्पन्ना एकादशी से एकादशी व्रत को शुरू करना सबसे उत्तम माना गया है |
एकादशी व्रत शुरू करने से पहले आप संकल्प लें कि जिस इच्छा से एकादशी व्रत प्रारंभ किया है उसके पूर्ण होने तक एकादशी का व्रत करता रहूंगा या फिर कुछ लोग वर्ष भर की एकादशी या जीवन पर्यंत एकादशी व्रत करने का संकल्प लेते हैं |
एकादशी व्रत करने वाले मनुष्य को दशमी के दिन से कुछ अनिवार्य नियमों का पालन करना चाहिए।
दशमी को नक्त व्रत करेजिसके अनुसार दशमी तिथि को एक समय भोजन करना चाहिए | दिन के आठवें भाग में जब सूर्य की ज्योति मन्द हो गयी हो, उसी समय को नक्त जानकर उसी में किये हुए भोजनको नक्त व्रत कहते हैं। रात्रि में भोजन करने का नाम नक्त व्रत नहीं है। एकादशी व्रत के लिए दशमी के दिन से ही प्याज, लहसुन, मसूर की दाल, चावल का सेवन बंद कर देना चाहिए। रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा भोग-विलास से दूर रहना चाहिए।
दशमी तिथि को भोजन के उपरांत सोने से पहले ही दातुन अथवा ब्रश कर लें क्योंकि एकादशी के दिन प्रात: दातुन न करने का नियम कहा गया है | नींबू, जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और उँगली से कंठ साफ कर लें, वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी वर्जित है। अत: स्वयं गिरा हुआ पत्ता लेकर सेवन करें। पानी से बारह बार कुल्ले कर लें
स्नानादि कर इस प्रकार व्रत का संकल्प लें -’ कमलनयन अच्युत ! आज एकादशी को व्रत करने का संकल्प ले रही हूं | आप मेरे शरणदाता हों। मुझे इस व्रत को पूरा करने की शक्ति दो ‘
एकादशी के दिन व्रतधारी को घर में झाडू नहीं लगाना चाहिए, इस दिन बाल या नाखून नहीं कटवाना चाहिए, एकादशी के दिन बाल धोने भी नहीं चाहिए तथा कपड़े भी नहीं धोने चाहिए | एकादशी को दिन में नहीं सोना चाहिए
इस दिन सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए। किंतु स्वयं किसी का दिया हुआ अन्न आदि कदापि ग्रहण न करें।
मधुर बोलें, अधिक न बोलें, अधिक बोलने से न बोलने योग्य वचन भी निकल जाते हैं । सत्य भाषण करना चाहिए ।
पद्मापुराण के अनुसार एकादशी को निराहार रहकर भगवान् विष्णु जी की पूजा करे । बार-बार जलपान ना करें || साल भर की अन्य एकादशी व्रत में आहार संयम का महत्त्व है। वहीं निर्जला एकादशी के दिन आहार के साथ ही जल का संयम भी ज़रूरी है। इस व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है |
स्वास्थय या अन्य कारणवश निराहार रहकर व्रत करना संभव न हो तो तो एक बार भोजन करें। व्रतधारी फल, घर में निकाला हुआ फल का रस या अथवा दूध या जल का सेवन कर सकते है। एकादशी व्रत में कुट्टू, आलू, साबूदाना, शकरकंद, जैतून, नारियल, दूध, बादाम, अदरक, काली मिर्च, सेंधा नमक, चीनी आदि खाने योग्य पदार्थ में शामिल हैं। फलों में केला, आम, अंगूर आदि के साथ सूखे मेवे जैसे बादाम, पिस्ता आदि का सेवन किया जा सकता है।
एकादशी के दिन भूलकर भी चावल नहीं खाने चाहिए| विष्णु पुराण के अनुसार एकादशी पर चावल खाने से पुण्य फल नष्ट हो जाते है। अन्य अनाज जैसे बाजरा, जौ और मैदा व उनसे बनी अन्य वस्तुएं, उडद, मसूर दाल और इनसे बनी वस्तु, मटर, छोला, सेम, शलजम, गोभी, गाजर, पालक, एकादशी व्रत में वर्जित खाद्य पदार्थ हैं। इसके अलावा मेथी, हींग, सरसों, सौंफ़, इलायची, इमली लौंग और जायफल आदि मसालें भी वर्जित हैं। बेकिंग पावडर, नमक, बेकिंग सोडा, कस्टर्ड जैसे बाजारू खाद्य-पेय और मिठाइयाें का सेवन नहीं करना चाहिये। भूलवश ऐसा होने पर तत्क्षण सूर्य देव के दर्शन कर विष्णुजी से क्षमा याचना करनी चाहिए।
प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करना चाहिए। रविवार, एकादशी, द्वादशी तिथि, अमावस्या, पूर्णिमा को तुलसी दल नहीं तोड़ना चाहिए। .तुलसी का पत्ता सात दिनों तक बासी नहीं होता है। अगर आपके पास ताजा पत्ता नहीं है तो बासी पत्ते को गंगाजल से धोकर कभी भी प्रयोग किया जा सकता है।
पापों से उपावृत्त (निवृत्त) होकर जो गुणोंके साथ वास किया जाय, उसीको ‘उपवास’ कहां जाता है। शरीरको सुखा डालनेका नाम ‘उपवास’ नहीं है | जुआ,, पान, परायी निन्दा, चुगली, चोरी, हिंसा, क्रोध तथा झूठ, कपटादि अन्य कुकर्मों से नितान्त दूर रहना चाहिए| पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा भोग-विलास से दूर रहना चाहिए।
एकादशी के दिन किसी सम्बन्धी या जानकार की मृत्यु हो जाय तो उस दिन व्रत रखकर उसका फल संकल्प करके मृतक को देना चाहिए
गन्ध , पुष्प आदि सामग्रियोंद्वारा भगवान् विष्णुकी विधिपूर्वक पूजा करके भगवान् जनार्दनको पञ्चामृतसे स्नान कराएं | धन लाभ के लिए एकादशी पर भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। एकादशी पर भगवान विष्णु की पीली चीजें जैसे पीले फूल, पीले वस्त्र, पीले अनाज, केला इत्यादि अर्पित करें। इससे आपकी हर मनोकामना पूरी हो सकती है। एकादशी पर भगवान विष्णु को खीर में तुलसी के पत्ते डाल कर भोग लगाएं। इससे घर में शांति बनी रहती है।
एकादशी की शाम तुलसी के सामने गाय के घी का दीपक लगाए और ॐ वासुदेवाय नमः मंत्र बोलते हुए तुलसी की 11 परिक्रमा करें। इससे घर में सुख-शांति बानी रहती है और संकट नहीं आता। एकादशी पर पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाएं। पीपल में भगवान विष्णु का वास मन जाता है। इससे कर्ज से मुक्ति मिलती है। रात्रि को जागरण कर विष्णु भगवान का कीर्तन करना चाहिए|
व्रत खोलने की विधि :
एकादशी व्रत के अगले दिन द्वादशी तिथि में सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। शास्त्रों का कथन है कि एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले कर लेना अति आवश्यक होता है। यदि तिथियों की घट-बढ़ के कारण द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व ही समाप्त हो गई हो तो ऐसी स्थिति में भी पारण सूर्योदय के बाद ही करना होता है।
द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि को हरि वासर कहा जाता है। एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान नहीं किया जाता है। व्रती को पारण करने के लिए हरि वासर समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। अर्थात् द्वादशी तिथि की प्रथम एक चौथाई अवधि बीत जाए उसके बाद पारण किया जा सकता है। पंचांग में प्रत्येक तिथि की पूर्ण अवधि लिखी रहती है, उसके चार भाग करके प्रथम भाग जितना समय बीत जाए उसके बाद पारण करना चाहिए।
एकादशी व्रत खोलने का सबसे उत्तम समय प्रात:काल होता है। व्रती को मध्यान्ह काल के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। इसका अर्थ यह हुआ कि प्रात: सूर्योदय के बाद तीन-चार घंटों के भीतर व्रत खोल लेना चाहिए। मध्यान्हकाल अर्थात् प्रात: 11 से दोपहर 1 बजे तक व्रत नहीं खोलना चाहिए। जो व्रती किसी कारणवश प्रात:काल में व्रत ना खोल पाएं उन्हें मध्यान्हकाल बीत जाने के बाद ही व्रत खोलना चाहिए।
तदनन्तर द्वादशी के दिन प्रातःकाल उठकर व्रतधारी स्नानन करे और इन्द्रियोंको वश में रखते हुए विधिपूर्वक भगवान् विष्णु की पूजा करे। नारद पुराण के अनुसार जो एकादशी के दिन भगवान् जनार्दन को पञ्चामृत से स्नान कराकर द्वादशीको दूध से नहलाता है , वह श्री हरि का सारूप्य प्राप्त कर लेता है। ( पूजनके पश्चात् प्रार्थना करे : ’ केशव ! मैं अज्ञानरूपीअंधकार सेअन्धा हो रहा हूँ। मेरे इस व्रत से आप प्रसन्न हों और मुझे ज्ञान दृष्टि प्रदान करें। ’
‘मेरे सात जन्मों के शारीरिक, वाचिक और मानसिक पाप नष्ट हुए’ – यह भावना करके सात अंजलि जल पीना और चने के सात दाने खाकर व्रत खोलना चाहिए । दशमी तिथि की तरह द्वादशी को भी हविष्यान्न (जौ, गेहूँ, मूँग, सेंधा नमक, कालीमिर्च, शर्करा और गोघृत आदि) का एक बार पारणा के रूप में भोजन करें। द्वादशी के दिन भी में प्याज, लहसुन, मसूर-उड़द-चने की दाल, कोदो को सेवन न करें. इसके साथ ही शहद भी न खाए। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्ठान्न, दक्षिणा देना चाहिए।
इस प्रकार विधि पूर्वक जब तक जिस कामना से व्रत शुरू किया हो वह पूरा न हो, तब तक विद्वान् मनुष्य एकादशी-व्रत करता रहे। संकल्प के अनुसार एकादशी के व्रत पूरे हो जाने पर उसका उद्यापन करे। मार्गशीर्षमास के शुभ शुक्ल पक्ष में एकादशी का उद्यापन किया जाता है।