एक गरीब ब्राह्मण परिवार था उस परिवार में एक बहुत ही सुंदर संस्कारी तथा गुणवान पुत्री थी । किंतु गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था जिस वजह से ब्राह्मण और उसकी पत्नी बहुत चिंतित थे।
एक दिन उस ब्राह्मण के घर एक साधु महाराज पधारे , वह ब्राह्मण के सेवा भाव से काफी प्रसन्न हो गए और कन्या को लंबी आयु का आशीर्वाद देते हुए साधु ने कहा कि इस कन्या की हथेली में विवाह योग नहीं है तब ब्राह्मण दंपत्ति ने साधु से उपाय पूछा कि यह कन्या ऐसा कौन सा शुभ कर्म करें किसके हाथ में विवाह के योग प्रबल हो जाए ।तब वह साधु ने कुछ देर विचार करके बताया कि कुछ ही दूरी पर एक गांव में सोना नाम की धोबिन रहती है जो बहुत ही संस्कारी, संपन्न तथा पति परायण हैं यदि आपकी पुत्री उसकी सेवा करें और वह धोबिन इसकी मांग में सिंदूर लगा दे इसके बाद इस कन्या का विवाह हो जाएगा ।
साधु ने यह भी कहां कि वह महिला कहीं आती-जाती नहीं ऐसी बातें सुनकर उसने अपनी बेटी से धोबिन की सेवा करने के लिए कहा। अगले दिन से ही प्रातः काल कन्या मुंह ढक कर सोना धोबिन के घर जाती है और उसके यहां साफ-सफाई अन्य सारे काम करके फिर अपने घर को वापस आ जाती है। एक दिन धोबिन अपनी बहू से पूछती है कि तुम तो सवेरे ही उठ कर घर के सारे काम कर लेती हो और मुझे पता भी नहीं चलता है। बहू ने कहा कि माझी मैंने तो सोचा कि आप ही उठकर के घर के सारे कार्य खत्म कर देती हो मैं तो देर से उठती हूं इस पर दोनों सास बहू निगरानी करने लगी कि ऐसा कौन है जो सुबह ही घर का सारा काम करके चला जाता है। दोनों सास बहू ने देखा कि एक कन्या अंधेरे में आ जाती है और घर के सारे कार्य करके फिर चली जाती है।
अगले दिन जब ब्राह्मण की पुत्री धोबिन के घर आई तो धोबिन उसके पैरों में गिर पड़ी उसे पूछने लगी कि आप कौन हैं और इस तरह चुप चाप मेरे घर की चाकरी क्यों करती हो तब कन्या ने साधु द्वारा बताई गई सारी बातें बताई ।लड़की की बातें सुनकर सोना धोबिन सिंदूर देने के लिए तैयार हो गई। सोना धोबिन के पति थोड़े से अस्वस्थ थे, वह कहीं बाहर जा रहे थे तो उन्होंने अपनी बहू से कहा:- मेरे लौटने तक घर पर ही रहना ।सोना धोबी ने जैसे ही अपनी मांग का सिंदूर उस कन्या की मांग में लगाया उसका पति मर गया।
उसे इस बात का पता चल गया था वह घर से निर्जल हो करके चल पड़ी । उसने सोचा कि रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भंवरी देकर और उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करूंगी ।उस दिन अमावस्या थी ब्राह्मण के घर मिले हुए पकवान की जगह उसने ईट के टुकड़ों से 108 बार भंवरी देकर के पीपल के पेड़ की परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया। ऐसा करते ही उसका पति जीवित हो गया।इसलिए जो व्यक्ति हर अमावस्या के दिन भंवरी देता है यानी यह भोजन की सामग्री दान करता है उसके यहां सुख सौभाग्य में वृद्धि होती है ।
पीपल के पेड़ में त्रिदेवका वास होता है जो व्यक्ति हर अमावस्या को नहीं कर सके वह सोमवार को पढ़ने वाली अमावस्या के दिन 108 वस्तुओं की भंवरी देवी और गौरी गणेश जी का पूजन करता है उसे अखंड सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है