पौष मास – रविवार की कथा (Poush Mass – Ravivar vrat katha)

ओम सूर्याय नमः

आप सभी को मेरा नमस्कार | आज मैं आप सभी के समक्ष पौष मास के रविवार की कथा प्रस्तुत कर रही हूं। कुछ जगहों पर इसे  आलूने रविवार की कथा भी कहा जाता है। 

 पौष मास सूर्य देव की आराधना व दान पुण्य का विशेष महत्त्व हैं | इस मास में रविवार का व्रत कर भगवान सूर्य को  पुष्प,अर्ध्य आदि के द्वारा पूजन करके आसानी से प्रसन्न किया जा सकता हैं | पौष मास के रविवार को व्रत करने  वाले मनुष्य भगवान सूर्य नारायण की आराधना में तत्पर रहे तो सन्तान आज्ञाकारी होती हैं तथा माता पिता से अधिक स्नेह करती हैं | और सन्तान का तेज सूर्य के समान बढ़ता जाता हैं | प्रभाव , मान सम्मान ,समाज में प्रतिष्ठा मिलती हैं | जो महिलाएँ तथा कन्याएँ वर्ष भर के रविवार का व्रत करना चाहती हैं, वे इसी माह से रविवार के व्रत प्रारंभ करती हैं। पौष मास को खर मास / काला महीना  अथवा मलमास भी कहा जाता है। इस महीने  सभी शुभ कार्य वर्जित होते हैं |  आइए शुरू करते हैं  पौष मास के रविवार की कहानी कथा –

पौष अलूने रविवार की व्रत कथा की कहानी चमत्कारी बेटी और लालची मां

 पुराने समय में एक नगर में एक साहूकार  रहता था |  उसकी कोई संतान नहीं थी | एक दिन  किसी काम से  वह सवेरे  सवेरे बाहर  गया,  उसी समय एक किसान खेत में  बीज बोने के लिए जा रहा था | साहूकार के मिलते ही वो वापस लौट गया और बड़बड़आने लगा – “आज तो अच्छा शगुन नही हुआ “| किसान की बात साहूकार ने सुन ली,  उसे बहुत बुरा लगा  और उसका मुंह उतर गया। उदास मन से जब  साहूकार घर पहुंचा तो उसकी पत्नी ने उदासी का कारण पूछा , साहूकार ने सारी बात बताई तो पत्नी बोली आज   मुंडेर पर चिड़िया आई  और बोली – ” जहां बच्चे नहीं  वहां दाना कहाँ से मिलेगा,  इतना कहकर  वह उड़ गई” |  पत्नी की बात सुनकर साहूकार को क्रोध  आ गया | उसी दिन से  वह  सूर्य भगवान की आराधना करने लगा | वह 12 वर्ष   बाद सूर्य भगवान साहूकार की आराधना से अति प्रसन्न होकर  उसके सामने प्रकट हुए और कहाँ मेरे आशीर्वाद से तेरे घर एक कन्या होगी |

 नवें महीने एक कन्या ने उनके घर में जन्म लिया | भगवान सूर्य के वरदान से हुई  यह बच्ची चमत्कारी थी। जब वह बच्ची रात को सोती तो रात में उसके मुंह से लार निकलती और  और सुबह वह  लार हीरे मोती में बदल जाती थी | रोज सुबह जब बच्ची की मां उसे दूध पिलाने के लिए उठाती तो उसे हीरे मोती  मिलते | इससे उनके घर में बहुत धन – दौलत हो गई और उनका जीवन सुख पूर्वक बीतने लगा| कुछ वर्ष बाद उसके पिता ने सोचा लडकी बड़ी हो गई हैं अब किसी अच्छे घर के विद्वान लड़के को ढूंढ कर इसकी शादी कर देते हैं | 

उसकी मां ने सोचा कि विवाह के बाद लड़की अगर अपने ससुराल चली गई तो यह सारा धन ऐश्वर्या भी चला जाएगा यह सोच कर लालच भरे मन से उसकी माँ ने कहा मेरा उठते ही इसका मुँह देखने का नियम हैं | क्यों नहीं हम घर जँवाई रख लेते हैं ?उसके पिता ने कन्या के लिए एक गरीब लड़का ढूंढा जो घर जमाई बनने के लिए तैयार हो गया और उससे अपनी बेटी की शादी कर दी | शादी के बाद रोज सुबह उसकी माँ उसको उठाने जाती तो  उसके पति को को बुरा लगता ।लडकी ने प्यार से  उसे समझा दिया की माँ के मेरा मुँह देखने का नियम हैं |

एक दिन जवाई लड़की की मां  के आने से पहले ही उठ गया  और उसने देखा  कि  उसकी पत्नी के  मुंह से  लार निकल रही है जो थोड़ी देर में हीरे मोती में बदल जाती है | उसने  सारे हीरे मोती उठा  लिए |  जब लडकी की माँ आई और जब उसे  वहां हीरे मोती नहीं मिले तो वह समझ गई की जँवाई को पता चल गया | 

उस लालच से भरी मां  को बहुत क्रोध आया और उसने उसने अपने जँवाई को मारने के लिए एक आदमी भेज दिया | जब शाम को काम से उसका जमाई घर आ रहा था तो   सास द्वारा भेजे हुए उस आदमी ने जँवाई को मार दिया  और उसका  सिर काट कर जंगल में  फेंक दिया |

उस समय पौष मास चल रहा था और लडकी का पौष के रविवार का व्रत करने का नियम था | वह पूजा कर कहानी सुन भोजन करने के लिये पति का इंतजार कर रही थी | सूर्य भगवान लड़की के पौष मास में  श्रद्धा पूर्वक रविवार का व्रत करने से अति प्रसन्न हुए उन्होंने ब्राह्मण का रूप धारण  किया और और लड़की के पति के शव के पास गाय | अंग जौडकर अमृत का छिता दिया और उसका पति जीवित हो गया |

उसका पति जब घर आया तो  तो लड़की ने पूछा – “आपको पता नहीं हैं क्या सूर्यास्त होने पर में खाना नही खा सकती |अगले दिन खाना पड़ता हैं “| उसके पति ने उसको सारी बात बताई | बेटी बोली – “अब हम यहाँ नही रहेंगे” “|  तब लड़की की मां ने बहुत पश्चाताप किया पर बेटी अपने पति के साथ ससुराल में रहने लगी | उसके घर में सुख़ स्मृद्दी हो गई | उसने अपने परिवार पुत्र पौत्र के साथ जीवन यापन कर अंत में सूर्य लोक में स्थान प्राप्त किया |

हे सूर्य भगवान ! जेसी आपने  अपनी उस भक्त कन्या पर कृपा करी  वैसे ही कथा को सुनने पढ़ने  ओमकारा भरने वाले सब पर  कृपा करना | || बोलो सूरज  देवता  की जय || सूर्य भगवान की जय |

पौष रविवार व्रत विधि –

यह व्रत पौष के महीने के प्रत्येक रविवार को रखा जाता है।  

इस दिन अलूना भोजन अर्थात बिना नमक के भोजन करते हैं तथा एक समय भोजन करके उपवास किया जाता है। 

अलूने रविवार के व्रत में विशेष रूप से दूध भात (चावल) या खीर ही खाई जाती है।  कुछ महिलाएँ केवल एक ही प्रकार का अन्न खाती है, वह भी बिना नमक वाला। इस व्रत को करने वाली कन्याएँ और महिलाएँ सिर धोकर, स्नान करके, अपने इष्ट देव का पूजन करके, सूर्य को दिन में तिन समय अर्ध्य देती हैं और सूर्य की पूजन करती हैं।

5 वर्ष तक व्रत करने के बाद इस व्रत का उद्यापन किया जाता है। पाँचवें वर्ष कन्याएँ पांच कन्याओं को और महिलाएँ पांच सुहागिन महिलाओं को भोजन कराती हैं, उन्हें अलूना भोजन खिलाने की आवश्यकता नहीं होती है। 

इसके बाद अपनी श्रद्धा अनुसार उन्हें दक्षिणा देकर व्रत का उद्यापन पूरा करती हैं। 

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