माघ मास संकट चतुर्थी,  तिल चौथ व्रत  की कहानी (Til chauth ki kahani – 2)

एक गांव में दो  भाई रहते थे। बड़ा भाई बहुत अमीर और छोटा भाई बहुत ही गरीब था, वह जंगल से लकड़ियां लेकर आता और बेचता था। वह अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी भी नहीं जुटा पाता था। बड़े भाई की पत्नी  पैसे वाली होने के कारण बहुत घमंडी थी और दूसरी ओर छोटे भाई की पत्नी गणेश भगवान की परम भक्त थी |वह अपनी जेठानी के घर काम करने जाती थी, वह जेठानी के घर का चूल्हा चौका सफाई बच्चों को खाना खिलाना आदि सारे काम करती थी। और घर जाते समय  उसकी जेठानी बचा हुआ खाना उसके परिवार के लिए दे देती थी।ऐसे ही दिन बीते चले गए और माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी आई। उस दिन देवरानी ने पूरे भक्ति भाव से तिल चौथ का व्रत रखा और शगुन के लिए  दो मुट्ठी  तिलकुटा बना कर    सीके में रख दिया । गणेश जी की पूजा करके  वह जेठानी के घर काम करने चली गई। उस दिन जेठानी ने भी तिल चौथ का व्रत रखा हुआ था,  सारा काम खत्म करने के बाद उसने  जेठानी केबच्चों से  खाना खाने को कहा, तब बच्चे कहने लगे जब  मां खाना खाएगी तभी हम खाएंगे। फिर उसने अपने चैट को खाने के लिए बुलाया,  तब जेड बोला मैं अपनी धर्म पत्नी के बिना खाना नहीं खाता |  हम सब इकट्ठे खाना खाएंगे। उसके बाद जेठानी  ने देवरानी को बोला, आज किसी ने भी खाना नहीं खाया इसलिए  मैं तुम्हें खाना नहीं दे सकती | आज तुमसब भूखे ही सो जाना, वैसे भी तुम्हें तो आदत है। देवरानी चुपचाप खाली हाथ घर  चली गई । दूसरी ओर देवरानी के बच्चे मां का इंतजार कर रहे थे कि आज तो त्यौहार है मां अच्छा खाना लेकर आएगी। जब देवरानी घर पहुंची उसे खाली हाथ देखकर बच्चे निराश होकर भूखे ही सो गए | उस दिन उसके पति ने  भूख से  बेचैन होकर  देवरानी को बहुत पीटा |  वह पूरे दिन की भूखी  औरत मार खाकर  गणेश जी को याद करते हुए ऐसे ही सो गई।

तभी थोड़ी देर बाद  संकट चौथ के  गणेश जी ने  उसे आकर कहा , की आज तो तिल चौथ व्रत  है , और तू भूखी क्यू सो रही है | तब देवरानी ने  पूरी बात बताई | तब भगवान बोले की मुझे भूख लगी है कुछ खाना  दो |  देवरानी बोली, सीके मैं तिलकुटा पड़ा है जाकर खा लो। गणेश जी ने तिलकुटा खा लिया और फिर बोले,  आज मैंने बहुत तिलकुटा खाया है, इसलिये निपटने  का मन है ,  कहा  निपट | वह बोली महाराज  सारा घर पड़ा है चाहो जहा चले जाओ | गणेश जी ने सारा घर सन  दिया | निबटने जाकर बोले पोछू   कहा बुरा लगता है क्यावह बोली मेरा लिलाट पड़ा है पोंछ लो  | गणेश जी पोंछ कर चले गए | थोड़ी देर बाद उठकर देखा ती सारा घर हीरे – मोती से जगमगा रहा था | सारा सिर भी सोने की आभा से चमक रहा रहा था | धन को बटोरने मे देर हो गई इसलिये जेठानी के नहीं जा सकी |जेठानी ने अपने बच्चो को चाची के घर देखने के लिये भेजा की चाची क्यों  नहीं आई है ? बच्चो ने आकर अपनी माता से कहा की माँ – माँ चाची के घर में  अब बहुत धन हो गया है |

जेठानी भागी – भागी अपनी देवरानी के पास आई और पूछा की इतना धन कैसे हुआ ? भोली – भली देवरानी ने सारी घटना सच – सच बता दी | इतना सुनकर जेठानी अपने घर आई और अपने पति को बोली की मुझे लकड़ी ही लकड़ी से बहुत मारो | देवरानी को देवर जी ने बहुत मारा इसलिये उसके बहुत धन हो गया | उसका पति बोला – भाग्यवान अपने अन्न धन के भंडार भरे हैं  तू धन के लालच में  क्यों मार खाती है | लकिन वो नहीं मानी और बहुत मार खाकर अपना  मकान खाली करके गणेश जी का स्मरण करके सो गई | गणेश जी महाराज आये ,और कहने लगे ,फालतू में मार खाने वाली उठ और मुझे बता की मै कहा निमटने जाऊ तब वो बोली मेरी देवरानी का छोटा – सा मकान था, मेरे तो बहुत बड़ा मकान है जहा इच्छा हो वही चले जाओ गणेश जी ने निमटना कर लिया | अब बोले पुछु कहा तू जिठानी ने गुस्से से  बोली मेरा लिलाट पड़ा है | पोछ कर चले गये थोड़ी देर बाद आकर देखा तो सारा घर सड रहा था और बदबू आ रही थी| तब वो बोली , हे गणेश जी महाराज ! आपने मेरे साथ छल – कपट किया है | देवरानी को तो धन – वैभव दिया और मुझे कूड़ा दिया |

गणेशजी आये और बोले तूने  धन के लालच में  मार खाई | जेठानी क्षमा – याचना करने लगी | हे गणेशजी भगवान ! मुझे तो धन नहीं चाहिये यह सब पहले की तरह कर दो | तब गणेशजी बोले कि अपने धन में से आधा धन देवरानी को दे जब ही में अपनी माया ठीक करूंगा | जेठानी ने आधा धन देवरानी को दे दिया | परन्तु कही एक सुई धागा रह गया जब जेठानी ने सुई धागा देवरानी ने दिया तब भगवान गणेश जी अपनी लीला समाप्त कर दी |

रिद्धि – सिद्धि के दाता गणेशजी भगवान ! जैसा आपने जेठानी के साथ किया वैसा किसी के साथ नहीं करना | जैसे देवरानी के भंडार भरा वैसे सभी के भरना | कहानी कहने , सुनने हुंकारा भरने वालो की मनोकामना पूर्ण करना 

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